Tipu Sultan History in Hindi/टीपू सुल्तान का इतिहास
Tipu Sultan History |
टीपू सुल्तान का जन्म
टीपू सुल्तान (Tipu Sultan in hindi) का जन्म 20 नवंबर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली में हुआ था। इनके पिता हैदर अली मैसूर साम्राज्य के सेनापति हुआ करते थे और इनकी मां का नाम फ़क़रुन्निसा था। हैदर अली कई लंबे समय तक मैसूर साम्राज्य के सेनापति रहे थे और बाद में अपनी ताकत के बल पर इन्होंने मैसूर राज्य के शासन को अपने हाथों में ले लिया था और इस राज्य के राजा बन गए थे। 32 साल की आयु में टिपू ने अपने पिता की गद्दी को संभाला था और साल 1782 में यह मैसूर के राजा बनें थे
टीपू सुल्तान का परिवार
Tipu Sultan के पिता का नाम (Tipu Sultan Father Name) हैदर अली था जो कि दक्षिण भारत में मैसूर के साम्राज्य के एक काबिल और सैन्य अधिकारी थे। इनकी माता का नाम (Tipu Sultan Mother Name) फातिमा फख- उन निसा था और Tipu Sultan इन दोनों के बड़े पुत्र थे।
उनके पिता हैदर अली साल 1761 में अपनी बुद्धिमत्ता और कुशलता के बल पर मैसूर सम्राज्य के वास्तविक शासक के रूप में सत्ता में काबिज हुए और उन्होनें अपने कौशल और योग्यता के बल पर अपने रूतबे से मैसूर राज्य में सालों तक शासन किया।
वहीं उनके पिता की 1782 में मौत के बाद वे Tipu Sultan ने मैसूर सम्राज्य का राजसिंहासन संभाला। वहीं उनका विवाह सिंध सुल्तान (Tipu Sultan Wife) के साथ किया गया, हालांकि इसके बाद उन्होंने कई और भी शादियां की। उनके अपनी अलग-अलग बेगमों से कई बच्चे भी हुए।
टीपू सुल्तान के बारे में :
1. टीपू सुल्तान का पूरा नाम ‘सुल्तान फतेह अली खान शाहाब’ था। ये नाम उनके पिता ने रखा था।
2. टीपू सुल्तान एक बादशाह बन कर पूरे देश पर राज करना चाहता था लेकिन उनकी ये इच्छा पूरी नही हुई।
3. टीपू ने 18 वर्ष की उम्र में अंग्रेजों के विरुद्ध पहला युद्ध जीता था।
4. टीपू सुल्तान को “शेर-ए-मैसूर” इसलिए कहा जाता हैं, Q कि उन्होनें 15 साल की उम्र से अपने पिता के साथ जंग में हिस्सा लेने की शुरूआत कर दी थी। पिता हैदर अली ने अपने बेटे टीपू को बहुत मजबूत बनाया और उसे हर तरह की शिक्षा दी।टीपू सुल्तान एक मुस्लिम शासक होने के बावजूद उन्होंने कई मंदिरों में तोहफे पेश किये। श्रीरंगपट्टण के श्रीरंगम (रंगनाथ मंदिर) को टीपू ने सात चांदी के कप और एक रजत कपूर -ज्वालिक पेश किया। मेलकोट में सोने और चांदी के बर्तन हैं। जिनके शिलालेख बताते हैं, कि ये टीपू ने भेंट किये थे। इनमे से कई को सोने और चांदी की थाली पेश की। टीपू ने कलाले के लक्ष्मीकांत मंदिर को चार रजत कप भेंट-स्वरूप दिए थे। ननजद्गुड़ के श्री कांतेश्वर मंदिर में टीपू का दिया हुआ एक रत्न जड़ित कप है। 1782 और 1799 के बीच, टीपू सुल्तान ने अपनी जागीर के मंदिरों को 34 दान के सनद जारी किये। नंजनगुड के ननजुदेश्वर मंदिर को टीपू ने एक हरा शिवलिंग भेंट किया।
टीपू सुल्तान का प्रारंभिक जीवन
महज 15 साल की उम्र में ही Tipu Sultan युद्ध कला में निपुण हो गए थे। उन्होंने अपने पिता हैदर अली के साथ कई सैन्य अभियानों में भी हिस्सा लिया। 1766 में उन्होनें ब्रिटिश के खिलाफ हुई मैसूर की पहली लड़ाई में अपने पिता के साथ संघर्ष किया था और अपनी कौशल क्षमता और बहादुरी से अंग्रेजों को खदेड़ने में भी कामयाब हुए।
वहीं इस दौरान उनके पिता हैदर अली, पूरे भारत में सबसे शक्तिशाली शासक बनने के लिए मशहूर हो गए थे। अपने पिता हैदर अली के बाद शासक बनने के बाद टीपू ने उनकी नीतियों को जारी रखा और अंग्रेजों को अपनी कुशल प्रतिभा से कई बार पटखनी दी, इसके अलावा निज़ामों को भी कई मौकों पर धूल चटाई।
Tipu Sultan ने अपने पिता के मैसूर सम्राज्य को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में पड़ने से बचाने के लिए वीरता के साथ प्रदर्शन किया और सूझबूझ से रणनीति बनाई। वे हमेशा अपने देश की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहते थे। इसके साथ ही वे अपने अभिमानी और आक्रामक स्वभाव के लिए भी जाने जाते थे।
- मैसूर के राजा बनने के बाद टिपू सुल्तान ने अपने राज्य के विकास और विस्तार के लिए बेहद ही अच्छे काम किए थे
Tipu Sultan kaun tha और उनसे जुडी अन्य जानकारी
- टीपू सुल्तान को मिसाइल मैन कहा जाता है। क्योंकि इनके द्वारा युद्ध के दौरान रॉकेट का इस्तेमाल किया गया था।
- टीपू के रॉकेट को लंदन के मशहूर साइंस म्यूजियम में भी रखा गया है। इस रॉकेट को 18वीं सदी में अंग्रेजों ने अपने कब्जे में ले लिया था और लंदन ले गए थे।
- जिस वक्त टीपू सुल्तान ने अपना पहला युद्ध लड़ा था उस समय इनकी आयु 18 वर्ष की थी।
- Tipu Sultan अपनी कुशलता और महानता के लिए जाने जाते हैं। वे एक महान योद्धा थे।
- Tipu Sultan का पूरा नाम ‘सुल्तान फतेह अली खान शाहाब’ था और उनका यहा नाम उनके पिता हैदर अली ने रखा था। वे भी एक कूटनीतिज्ञ और दूरदर्शिता के पक्के थे।
- योग्य और कुशल शासक Tipu Sultan एक बादशाह बन कर पूरे देश पर राज करना चाहता था, लेकिन उस महायोद्धा की ये इच्छा पूरी नही हुई।
- Tipu Sultan ने महज 18 साल की उम्र में अंग्रेजों के खिलाफ अपनी पहली जंग जीती थी।
- आपको बता दें कि वीर योद्धा Tipu Sultan को “शेर-ए-मैसूर” इसलिए कहा जाता हैं, क्योंकि उन्होनें महज 15 साल की छोटी उम्र से ही अपने पिता के साथ जंग में हिस्सा लेने की शुरूआत कर दी थी और इस दौरान टीपू ने बेहतर प्रदर्शन किया था। वहीं पिता हैदर अली ने अपने बेटे टीपू को बहुत मजबूत बनाया और उसे राजनीतिक, सैन्य सभी तरह की शिक्षा दी।
- टीपू सुल्तान हुए वीरगति को प्राप्त
‘फूट डालो, शासन करो’ की नीति चलाने वाले अंग्रेज़ों ने संधि करने के बाद भी Tipu Sultan से गद्दारी कर डाली। ईस्ट इंडिया कंपनी ने हैदराबाद के निजामों के साथ मिलकर चौथी बार टीपू पर ज़बरदस्त हमला किया और इस लड़ाई में महान योद्धा Tipu Sultan की हत्या कर दी।
इस तरह 4 मई साल 1799 में मैसूर का शेर श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए शहीद हो गया। इसके बाद इनके शव को मैसूर के श्रीरंगपट्टनम में दफन किया गया। ये भी कहा जाता है कि Tipu Sultan की तलवार (Tipu Sultan ki Talwar) को ब्रिटशर्स ब्रिटेन ले गए।
इस तरह वीरयोद्धा Tipu Sultan हमेशा के लिए वीरगति को प्राप्त हो गए और इसके बाद इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए उनकी वीरगाथा के किस्से छप गए।
महायोद्धा Tipu Sultan की मौत के बाद 1799 ई. में अंग्रेज़ों ने मैसूर राज्य के एक हिस्से में उसके पुराने हिन्दू राजा के जिस नाबालिग पौत्र को गद्दी पर बैठाया, उसका दीवान पुरनिया को नियुक्त कर दिया गया था।
टीपू सुल्तान की मृत्यु
टीपू सुल्तान की मृत्यु सन ४ मई 1799 में हुई। टीपू की मृत्यु के बाद उनका सारा राज्य अंग्रेजों के हाथो में चला गया। और धीरे धीरे पूरे भारत पर अंग्रेजों का अधिकार हो गया।
टीपू सुल्तान का योगदान टीपू सुल्तान ने अपने शासनकाल में नये सिक्के और कलैंडर चलाये। साथ ही कई हथियारों के अविष्कार भी किये। टीपू सुल्तान दुनिया के पहले राकेट आविष्कारक थे। टीपू सुल्तान ने लोहे से बने मैसूरियन रॉकेट से अंग्रेज घबराते थे। टीपू सुल्तान के इस हथियार ने भविष्य को नई सम्भावनाये और कल्पनाओं को उड़ान दी। ये रॉकेट आज भी लंदन के म्यूजियम में रखे गये हैं। अंग्रेज टीपू सुल्तान की मृत्यु के बाद उस रॉकेट को अपने साथ ले गए थे। टीपू सुल्तान ने अपने इस हथियारों का बेहतरीन इस्तेमाल करके कई युद्धों में जीत हासिल की। टीपू ने फ्रांसीसी के प्रति अपनी निष्ठा कायम रखी। टीपू सुल्तान ‘जेकबीन क्लब’ के सदस्य भी थे ,जिन्होंने टीपू सुल्तान के शासन काल में अंग्रेजो के खिलाफ फ्रांसीसी , अफगानिस्तान के अमीर और तुर्की के सुल्तान जैसे कई सहयोगियों की सहायता कर उनका भरोसा जीता।
टीपू सुल्तान की तलवार का वजन 7 किलो 400 था। उनकी तलवार पर रत्नजड़ित बाघ बना हुआ है। वहीँ इस तलवार की कीमत 21 करोड़ के लगभग आंकी गयी। टीपू सुल्तान के सभी हथियार अपने आप में कारीगरी का बेहतरीन उदहारण हैं।टीपू सुल्तान की अंगूठी 18 वी सदी की सबसे विख्यात अंगूठी थी। उसका वजन 41 . 2 ग्राम था। उसकी नीलामी कीमत लगभग 145,000 पौंड यानी करीब 14,287 ,665 रुपये में हुई। ‘क्रिस्टी ‘ ने इसके बारे में उल्लेख किया है कि ‘ यह अद्भुत है कि एक मुस्लिम सम्राट ने हिन्दू देवता के नाम वाली अंगूठी पहने हुए था। टीपू सुल्तान की ‘ राम ‘ नाम की अंगूठी को अंग्रेज उसके के मरने के पश्चात् उसे अपने साथ ले गये।
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